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वह अनुपमा !

kuchhkhhash
kuchhkhhash
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Niyati
ना ना अब बस भी करो
सब्र का हर बांध टूटा
नियति ऐसे चल पड़ी कि
बुन गया हर स्वप्न झूठा !

सरस उन दो नयनों में
शून्य ही अब दिखता है
आशाएं टूटी दरक कर
फिर वो टुकड़े चुनता है !

दुनिया के इतने रंग देखे
बेनूर कोहिनूर हो गया
संघर्ष पथ का वो पथिक
विश्राम अब तकने लगा !

हार का है बोझ सर पे
कदम अब उठते नहीं
राहें भी रुख मोड़ चली
आ चल आसमां ढूंढे कहीं !

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