kuchhkhhash
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चमकीले से ख्वाब थे आज ख़ाली हैं वो आँखें
हसरत कोई आँसूओं में कभी बह गया होगा.
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न चाहतें रहीं न अरमानों का परवाज़ ही
वक़्त का परिंदा चुपके से उड़ गया होगा.
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कभी आबाद था आज वीरां हैं हर गली कूचा
बड़ी बेबसी में किसीने इस शहर को छोड़ा होगा.
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फ़रियाद न किया न ही शिकवा ही किसी ने
शोर था आहों का, आसमां तक गया होगा .
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यूँ ही फिज़ा में दर्द के रंग घुलते नहीं
जरुर दिल किसीका टूटकर बिखरा होगा .
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