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कहते हैं जोड़ियाँ आसमानों में बनती हैं पर हाल के अनुभवों ने मेरी इस धारणा को काफी हद तक बदल कर रख दिया है | हुआ यह कि अपने पहचानवालों की मदद के उद्देश्य से मैंने दो विवाहयोग्य कन्याओं के प्रोफाइल एक विवाह साईट पर डाल दिए | सोचा कि वह अपने स्तर पर प्रयासरत हैं ही, अगर मुझसे उनकी कुछ मदद हो जाएगी तो इसमें कोई बुराई नहीं है| इसके बाद शुरू हो गया ऐसे अनुभवों का दौर जिसने मुझे परेशान कर दिया | मैं यह सोचने पर विवश हो गई हूँ कि आज के इस “मॉडर्न एज” में भी कन्याओं का विवाह अधिकतर इस बात पर निर्भर करता है कि उसके अभिभावक कितना इन्वेस्ट कर सकते हैं !
जिन दो कन्याओं के प्रोफाइल मैंने डाले थे उनमें पहली मिडिल अपर क्लास की है- स्मार्ट और लम्बी, इसके अभिभावक को पैसे खर्चने में कोई समस्या नहीं है| क्लास वन या टू का लड़का चाहिए | दूसरी एम्.काम., खुबसूरत और सामंजस्यपूर्ण प्रवृति की- इसके अभिभावक आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के हैं इसीलिए कोई भी आत्मनिर्भर लड़का चलेगा| दोनों लड़कियां कामकाजी हैं | समस्या यह की दोनों को मैथिल ब्रह्मण लड़का ही चाहिए और बिहार के मिथिलांचल क्षेत्र में दहेज़ का तांडव कुछ ज्यादा ही है | अब सुनाती हूँ अपनी कहानी |
पहली के लिए मैंने दो सिविल सेवारत अफसरों को चुना | दोनों ने मेरी पहल को स्वीकृत किया | पहले वर के संपर्क नंबर पर बातचीत शुरू हुई | यहाँ धीरे धीरे मुझे इस बात का अंदाजा हो गया कि यहाँ लड़के की कोई रूचि नहीं थी पर सम्बन्धी झूठे आश्वासन दिए जा रहे थे अपने 35 -40 लाख के बजट के साथ ! दुसरे लड़के से सीधी बातचीत हो गई | उसने फोटोस और बायोडाटा माँगा जिसे मैंने भेज दिया | इसके बाद उसने समय आने पर संपर्क करने का भरोसा दिया |
इसी दौरान एक बार यात्रा के क्रम में एक ऐसे बुजुर्ग दंपत्ति से मुलाकात हुई जो उन आईएएस के परिचित थे | उनहोंने बताया कि वह महोदय तीन सालों से फोटो और परिचय जमा कर रहे हैं और लड़कीवालों की ऊँची बोली तोल रहे हैं | तीसरा लड़का न्यू जर्सी में कार्यरत था | इन्हें संस्कारी मैथिल ब्रह्मण कन्या चाहिए थी | वहां कई बार सकारात्मक बात हुई, और बात जब अंतिम चरण में पहुंची तो पता चला कि उन्हें गाँव में बसे अपने माता पिता की सेवा के लिए बीवी चाहिए |
अब आती हूँ दूसरी पर | यहाँ दहेज़ की बात पर संशय की स्थिति थी अतः मैंने कहीं पहल नहीं की और उसके प्रोफाइल में ही दहेज़ न देने की बात स्पष्ट कर दी | उसकी खुबसूरत फोटो और योग्यता से प्रभावित होकर प्रस्ताव आने शुरू हो गए | (मुझे ऐसा ही लगा था) ! पहला प्रस्ताव था रेलवे के एक तृतीयवर्गीय कर्मचारी की | बिना पूछे ही उसने आधे घंटे तक अपने गुणों का बखान किया और अपने ऑफिसर क्लास का निर्धारण भी ! अब मेरी बारी थी | मैंने बेबाकी से उसका “दाम” पूछ लिया तो उसने उतनी ही बेबाकी के साथ 10 -15 लाख का हिसाब-किताब दिखा दिया | दुसरे लड़के को उसकी आर्थिक स्थिति से कोई मतलब नहीं था | मैंने इश्वर को धन्यवाद दिया पर दूसरे ही पल उसने लड़की का मोबाईल नंबर मंगाते हुए कहा कि अभी एक डेढ़ साल विवाह कि कोई योजना नहीं है |
“तो फिर अभी नंबर लेकर क्या करोगे ?” “अरे आज के ज़माने की हैं आप ! लड़की को जानना- पहचानना भी तो जरुरी है |”
“एक डेढ़ साल तक ?…सॉरी भाईसाहब !” कहकर फोन रख दिया |
तीसरे लड़के की अपनी कोई मांग नहीं थी पर उसके पिता को सम्बन्धियों के बीच अपनी प्रतिष्ठा कायम रखनी थी- लड़के के पिता होने का !! आखिर उसे अपनी बहन की शादी में भी तो दिल खोलकर खर्चे करने पड़े थे !
दो भिन्न आर्थिक वर्गों के दो प्रस्ताव- पर मेरे स्तर पर कही बात बन नहीं पाई | एक दहेज़ दे रहा है और दूसरा अपनी गुणी बेटी पर कहीं निर्वाह नहीं | मैं उनसे क्षमा चाहती हूँ | ….इसमें कोई दो राय नहीं कि अपने देश में शादी विवाह को लेकर धारणाओं में काफी परिवर्तन आया है पर महानगरीय सभ्यता व सोच हर जगह लागू नहीं की जा सकती | इस मामले में उत्तर भारतीय राज्यों का यह हाल है कि अधिकांश पढ़े लिखे- समर्थ लड़के भी मिलनेवाले दहेज़ के बूते समाज में अपनी योग्यता और महत्ता प्रमाणित करना चाहते हैं |
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