- 33 Posts
- 518 Comments
दिल्ली से सटी नॉएडा की एक खबर देखकर मन में क्षोभ और आश्चर्य भर उठा | वहां की दो बहनों को एनजीओ कार्यकर्ताओं ने पुलिस की मदद से घर से बाहर निकाला, वह घर जो उनके लिए काल कोठरी बन चुका था | इसके बाद उन्हें तुरत अस्पताल पहुँचाया गया | इन दोनों बहनों ने माता पिता की मौत के बाद अपने छोटे भाई को पढ़ा-लिखा कर काबिल बनाया पर नौकरी और शादी के बाद भाई ने अलग रहने में ही अपनी भलाई समझी | अकेली बहनों के पास उनका पालतू कुत्ता रह गया पर उसकी भी मौत हो गई| इसके बाद सारा परिदृश्य ही बदल गया | बड़ी बहन अनुराधा chartered Accountant थी पर असुरक्षा की भावना और एक एक कर सदमा झेलते हुए उसने अपनी नौकरी छोड़ दी | धीरे धीरे दोनों बहनों ने अपना संपर्क बाहरवालों से पूरी तरह ख़त्म कर लिया | उनहोंने खुद को उस घर में लगभग साल भर से कैद कर रखा था और उनका डिप्रेशन इस हद तक खतरनाक स्थिति में आ पहुंचा कि उनहोंने तीन माह से खाना पीना भी लगभग छोड़ रखा था | बिजली, पानी और फोन का कनेक्शन कटा हुआ था | ऐसे में जब वो पुलिस द्वारा जबरन बाहर लाई गई तो उनकी हालत देखकर आँखे फटी रह गईं | दोनों बहनें हड्डियों का ढांचा नजर आ रही थी जिनसे चला भी नहीं जा रहा था |..और आज सुबह ही ये खबर मिली कि अनुराधा इस दुनिया में नहीं रही और छः माह से कोई सुध-बुध न लेनेवाला भाई अस्पताल में अपने आंसू पोछ रहा था |
ऐसी ही एक घटना 2007 में भी घटी थी जब दक्षिणी दिल्ली की दो बहनें कई माह से अपने मृत भाई के शरीर के साथ रह रही थीं |
जाने वो दिन कहाँ चले गए जब पडोसी एक दुसरे के दुःख-सुख के साथी हुआ करते थे पर आज ये पडोसी भी अनावश्यक से प्रतीत होते हैं| दोष हमारी अपनी मानसिकता का है जिसने हमें इस हद तक स्व-केन्द्रित बना दिया है कि बाहर की दुनिया और अडोस-पड़ोस हमारे लिए कोई मायने ही नहीं रखता | …ऐसे में खून के रिश्तों का खून हो रहा है तो आश्चर्य कैसा ?
समय का अभाव और बस हर कहीं समय का रोना …हालात ये हैं कि आस पास की खबरें भी हमें टेलीविजन के माध्यम से पता चलती है | यह स्थिति कितनी खतरनाक है , हम उसका अंदाजा भी नहीं लगा सकते | पड़ोस के मकान में किरायेदार के रूप में आतंकवादी आ घुसते हैं और हमें पता भी नहीं चलता | यह सही है कि आज की तेज रफ़्तार जिंदगी में किसी के पास बात तक करने की फुर्सत नहीं है ,न ही कोई एक दुसरे की जिंदगी में दखल देना या दखल पाना चाहता है पर एक काम तो हम कर ही सकते हैं- अपनी आँखें और कान खुले रखें और बस दो मिनट अपने आस-पड़ोस के लिए भी रखें |
सबसे बड़ा आश्चर्य यही है कि हम दूसरों के ऐसे हालात देखकर भी स्वयं के लिए वैसी कल्पना तक करना पसंद नहीं करते पर हठात स्थितियां और समय का करवट स्वयं के नियंत्रण से बाहर की बात होती है, इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए |
Read Comments