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संस्कारों में छुपी ग्रहों की शुभता

kuchhkhhash
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ज्योतिषशास्त्र हमारी प्राचीन संस्कृति का हिस्सा है. यह जाने अनजाने हमारे रीति-रिवाजों एवं संस्कारों में रचा बसा हुआ है. वर्त्तमान में हमारी संस्कृति अतिक्रमण के दौर से गुज़र रही है . संस्कृति,परम्परों और रीति-रिवाजों का एक नया अवतार हमारे सामने है. उपरी तौर पर कहीं कोई समस्या नहीं है क्योंकि यही रूप हमारी सुविधा के अनुरूप है लेकिन आसान राहें अक्सर लक्ष्य को बहुत दूर कर देती हैं. अपने ढंग से अपनी लाईफ-स्टाईल जीने की तमन्ना ने मानसिक शांति, स्थिरता और आनद के पल हमसे छीन लिए हैं.
वास्तव में हमारे संस्कारों,रिश्ते-नातों और रिवाजों में अप्रत्यक्ष रूप से अशुभ ग्रहों को शांत या अधीन रखने का ढांचा समाहित होता था …आइये जानते हैं कैसे हमारे संस्कार ग्रहों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं-
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सबसे पहले सूर्य की बात करते हैं. अनैतिक आचरण , अमर्यादित जीवन एवं किसी को प्रताड़ित करना सूर्य की अशुभता बढाता है. साथ ही सूर्योदय के बाद शयन ,प्रकृति के विरुद्ध आचरण एवं रात्रि में क्रियाशीलता सूर्य को अशांत करता है . अतः सूर्य की शुभता बढ़ाने के लिए पिता का आशीर्वाद,स्वाभाव में दयालुता ,उत्साह एवं नैतिकता पालन आवश्यक है. सूर्य हेतु स्वर्ण धारण करना शुभ है.
चन्द्रमा की बात करें तो इसकी अशुभता मानसिक एवं भावनात्मक पीड़ा तथा अस्थिरता देता है. चन्द्रमा को शुभ रखने का एक सरल व प्रभावी नुस्खा यह है कि प्रातः काल उठकर माता का चरण स्पर्श करें एवं उनका आशीर्वाद लें . चांदी चन्द्र का धातु है.
बारी आती है मंगल की . छोटे भाई-बहनों से मतभेद या शत्रुता मंगल की अशुभता बढाता है . अतः उनसे अच्छे सम्बन्ध बनाये रखना या किसी कार्य में उनसे सहयोग या उनकी सहमति लेना मंगल को बली बनता है . ताम्बा मंगल का धातु है.
बुध की बात करें तो इसकी अशुभता मानसिक संतुलन के साथ साथ एकाग्रता को भी प्रभावित करता है . पेड़ -पौधे विशेषकर तुलसी का पौधा लगाना एवं पौधों की
देख भाल करना बुध की शुभता बढाता है. योग्य लोगों की मित्रता व अपनों वाणी पर नियंत्रण रखने से बुध बली होता है .भांजा-भांजी एवं ननिहाल के कुटुंब बुध के कारकत्व हैं.
गुरु- अशुभ गुरु का प्रभाव व्यक्ति में अनैतिक आचरण लाता है एवं वह कर्तव्य पालन से जी चुराने लगता है. बड़े भाई-बहन ,गुरु व वरिष्ठों को आदर-सम्मान देना गुरु की शुभता बढाता है. शुद्ध आचरण व अपने कर्तव्यों के प्रति सजग रहने से गुरु अनुकूल होते हैं.
शुक्र- वर्तमान में यह ग्रह सर्वाधिक प्रासंगिक है क्योंकि यह सुख, ऐश्वर्य एवं भोग-विलास का कारक है . अशुभ या अस्त शुक्र असफल प्रेम सम्बन्ध, साधारण जीवन एवं स्त्री-सुख में कमी कर देता है . शारीरिक एवं मानसिक स्वच्छता व स्त्री वर्ग के प्रति आदर शुक्र को बल प्रदान करता है.
शनि- शनि की अशुभता सभी प्रकार के दुखों व संघर्षों का कारण बनती है .शनि को अनुकूल बनाने के लिए नौकरों, पीड़ितों ,लाचार एवं अपंगों की सहायता करनी चाहिए . हनुमत आराधना भी विशेष शुभ है.

आज जब एकल परिवारों का चलन बढ़ता जा रहा है, रिश्ते -नातों की सार्थकता केवल औपचरिकताओ तक सीमित होकर रह गया है . ऐसे में संस्कार,सम्बन्ध या परम्पराओं जैसे शब्द आउटडेटेड लगते हैं, लेकिन हमें यही नहीं पता कि इसके बदले हम क्या गँवा रहे हैं !

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