kuchhkhhash
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मेरा शीशमहल और
बचपन का साथी तन्हाई
कुछ अनजाने कंकड़
ख्वाब से जगा गए l
दरवाजे से निकलती
वो थकी सोयी गलियां
उन कदमों की आहट से
हम नींदें गँवा बैठे l
व्यस्तताएं है बड़ी,यह
चलो मैंने मान लिया
आँखों का वो यकीं तुझे
बेवफा नहीं होने देता l
बंद कर दिए सभी
दरवाजे और खिड़कियाँ
ये किसकी दस्तक है जो
कभी चैन नहीं लेने देता l
घूँघट की ओट और
दबी दबी सी धड़कन
शरारती झोंके ने
गिरे परदे उठा दिए l
ये शाम भी ढल गयी
मिलता नहीं सुकूं का पता
इस अजनबी शहर में
हम खुद को भुला बैठे l
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