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“रोते हुए आओगे ,हँसते हुए जाओगे “,”३६ घंटे में गारंटिड समाधान”,चेहरा देखकर भविष्यवाणी करनेवाले सिध्धिप्राप्त ज्योतिषी” ,”प्रेम,रोज़गार एवं वशीकरण विशेषज्ञ ज्योतिषी से मिलकर सोता भाग्य जगाएं “- ये कुछ ऐसे विज्ञापन हैं जिनपर अक्सर नज़र पड़ती है .हममें से अधिकांश लोग ऐसे विज्ञापनों को नज़रंदाज़ करने में ही अपनी भलाई समझते हैं ,लेकिन बस इतना सा यथार्थ नहीं है ज्योतिष का, बल्कि आज की उपभोक्तावाद संस्कृति ने ज्योतिषशास्त्र की जो सीमा निर्धारित की है वह हम जैसे ज्योतिष अध्यार्थियों को वाकई शर्मसार करता है.
शत प्रतिशत गारंटी,चैलेंज या बड़े बड़े दावे करने का नाम ज्योतिष नहीं है वरन यह कर्म और भाग्य के बीच सामंजस्य बिठाने का व्यावहारिक विज्ञानं है. ज्योतिष किसी गारंटिड समाधान,चमत्कार या अन्धविश्वास का बिलकुल समर्थन नहीं करता बल्कि यह ऐसे दावों की पोल खोलता है. ज्योतिषशास्त्र इन्सान को कभी भाग्यवादी नहीं बनाता, यथार्थ में यह भाग्य को कर्म सिधांत के आधार पर तोलता है. यहाँ भाग्य नीव का केवल एक पत्थर है और कर्म उसपर खड़ा वह स्तम्भ ,जिसके इर्द-गिर्द ज़िन्दगी चक्कर काटती है.
अक्सर टीवी चैनलों पर ज्योतिष पर आधारित परिचर्चाएं देखने को मिल जाती है,जहाँ यही नहीं तय हो पता कि ज्योतिषशास्त्र है क्या-विज्ञानं,साहित्य या व्यव्हार !! इसका यही उत्तर हो सकता है कि ज्योतिष इन सबसे बहुत ऊपर एक पराविज्ञान है जो पुर्णतः वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित है,जिसे झुठलाना संभव नहीं .ज्योतिष सूक्ष्म खगोलीय गणना एवं गणितीय सिधान्तों पर आधारित एक विशुद्ध विज्ञानं है जिसके आधार पर पूर्ण फलादेश करना बिलकुल संभव है.कहा जाता है कुंडली मनुष्य के भुत,वर्तमान एवं भविष्य का अक्सरे होता है , महत्वपूर्ण यह है कि फलादेश करनेवाला ज्योतिषी विद्या के प्रति कितना समर्पित एवं योग्य है.
वर्त्तमान समय में परिवर्तित-परिवर्धित होती संस्कृत्ति के लिए प्राचीन महत्त्व को तलाशना संभव नहीं है .आज ज्योतिषशास्त्र के प्रति आस्था का यह हाल है कि इसके दैवीय विज्ञानं की उपाधि पर सवालिया निशान लग चुके हैं..
आज न वैसे साधन हैं , न साधक और न ही साध्य के उपकरण . ऐसे में हावी होती बाजारवाद के इस दौर में ज्योतिषशास्त्र का यह नया रूप है -चौकानेवाला ,चमत्कारी और चुटकियों में समाधान करनेवाला…पता नहीं यह दावे कहाँ तक सटीक बैठते हैं पर सवाल आस्था का है ,जिसे संभाले रखना जितना मुश्किल है,उतना ही आसान है इसका टूटना .यह बात आज के ज्योतिषीयों को समझनी होगी .
आज भी ज्योतिष शास्त्र का पुरातन स्वरुप अपनाये जाने को बेकरार है ,आज भी योग्य ,समर्पित ज्योतिष गुरु उपलब्ध हैं ,लेकिन उनको तलाश करना
भूसे के ढेर में से सुई तलाश करने के बराबर है .
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