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एक स्पष्टीकरण

kuchhkhhash
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मैं अपनी एक हास्य व्यंग्य कविता ‘मतदान……’पर आई एक प्रतिक्रिया से व्यथित हूँ,इसलिए यह स्पष्टीकरण देने की आवश्यकता महसूस हुई.
मेरी रचना का सारांश यह कतई नहीं है कि सभी ग्रामीण गंवार और बेवकूफ होते है.ऐसा सोचने कि हिमाकत भी मैं कैसे कर सकती हूँ जब यह पता हो कि हम में से अधिकांश लोगों की जड़ें वहीँ से जुडी हैं,चाहे वो अति महत्वपूर्ण पदों पर आसीन महानुभाव हों या कोई प्रथमवर्गीय कर्मचारी.
पहली बात तो यह कि हास्य-व्यंग्य रचनाओ में तथ्यों का यथार्थ से सम्बंधित होना जरुरी नहीं है,दूसरी,मेरी रचना भारत के सभी गाँवों का प्रतिनिधित्व नही करती. ऐसा होना संभव भी नही क्योंकि सभी गाँवों की भौगोलिक स्थिति,विकास दर और उपलब्धि स्तर एक सी हो ही नही सकती.
इसी भिन्नता को दर्शाने के लिए मैंने कविता का शीर्षक ही ‘लालटेन युगीन’ डाला है. मैंने इस कविता की रचना तभी की थी (छः साल पहले),जब किसी गाँव में ई.भी.ऍम.का प्रयोग होना किसी कौतुक या उपलब्धि से कम नही था- विशेषकर बिहार के गाँवों में. क्या सायमाजी पूर्णतः आश्वस्त है कि आज के सभी गाँवों के बीच एक भी लालटेन युगीन गाँव नही बचा ?अब सायमा जी कहेंगी,लालटेन युगीन होने का मतलब बेवकूफों का गाँव होता है क्या?……….नहीं जी मैं ऐसा भी नही कह रही,न ही मेरी रचना ऐसा कहती है.जब कोई नई आविष्कृत वस्तु सामने आती है तो उसके प्रयोग को लेकर क्या हम सभी बेवकूफ नही होते? भले ही कुछ पलों के लिए ही सही ,पर संशय की स्थिति तो होती है ? इसका मतलब यह नहीं कि हम पैदायसी बेवकूफ हैं .

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