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मैं रजनी हूँ

kuchhkhhash
kuchhkhhash
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अपने शाश्वत सत्य को
कुछ पल के लिए झुठलाती
कृत्रिम उजाले लेकर
सूरज के विरुद्ध
षड्यंत्र करती
मैं रजनी हूँ.
पपराते होंठ,सूखे कंठ
और लहूलुहान पांवों को
बेड़ियाँ पहनाती
मैं विराम हूँ .
कनफोडू शोर और
हांफते पलों को,
पथराने का शाप देती
मैं वीरान हूँ .
प्रतीक्षातुर आँखें और
आत्मा पर
बोझिल शारीर को
स्वर्गिक मुक्ति देती
मैं पूर्ण विराम हूँ.

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